भावित होने वाली प्रमुख ट्रेनें: शताब्दी एक्सप्रेस - समशी स्टेशन पर रुकी हुई है। कुलिक एक्सप्रेस - कुमारग्राम स्टेशन पर रुकी हुई है। तेभागा एक्सप्रेस - एकलाखी स्टेशन पर रुकी हुई है। गौर लिंक एक्सप्रेस - मालदा स्टेशन पर रुकी हुई है।
पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में सेनेगल आदिवासियों के रेल रोको अभियान के कारण कई ट्रेनें प्रभावित हुईं। बड़ी संख्या में लोग होर्डिंग और बैनर लेकर आदिना स्टेशन पहुंचे और पटरियों को जाम कर दिया। इसके चलते कई ट्रेनों को अलग-अलग स्टेशनों पर रोक दिया गया है। मिली जानकारी के मुताबिक, सेनेगल जनजाति के लोगों की 6 सूत्री मांग है, जिसके चलते वे रेल को रोक रहे हैं। अधिकारी इसे सुलझाने और ट्रेन सेवाओं को फिर से शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं।
यहां देखें प्रभावित होने वाली प्रमुख ट्रेनों की सूची:
1.) शताब्दी एक्सप्रेस - समशी स्टेशन पर रुकी हुई है
2.) कुलिक एक्सप्रेस - कुमारग्राम स्टेशन पर रुकी हुई है
3.) तेभागा एक्सप्रेस - एकलाखी स्टेशन पर रुकी हुई है
4.) गौर लिंक एक्सप्रेस - मालदा स्टेशन पर रुकी हुई है
प्रदर्शनकारियों की मांगो में मुख्य रूप से सरना धर्म कोड शामिल है। बता दें की 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में सरना धर्म कोड लागू करने की मांग एक अहम मुद्दा रहेगा। गैर भाजपा शासित राज्यों में सरना धर्म कोड की मांग तेजी से उठ रही है। झारखंड की सत्तारूढ़ हेमंत सोरेन सरकार ने सरना धर्म कोड लागू कराने को लेकर एक प्रस्ताव 11 नवंबर 2020 को झारखंड विधानसभा से पारित किया था। यह प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया। हालांकि अभी तक इसे मंजूरी नहीं मिली है। झारखंड की तर्ज पर अब पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ में भी अब सरना धर्म कोड की मांग उठने लगी है।
पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने फैसला किया है कि आदिवासियों के सरना धर्म को मान्यता देने के लिए राज्य सरकार 13 फरवरी को विधानसभा में प्रस्ताव पेश करेगी। झारखंड सहित पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, ओड़िशा और बिहार में रहने वाले आदिवासी समुदाय का बड़ा तबका अपने आपको सरना धर्म के अनुयायी के तौर पर मानता है। सरना आदिवासी इस मांग को लेकर सालों से संघर्ष कर रहे हैं। वो मांग कर रहे हैं कि होने वाली अगली जनगणना में उनके आगे हिंदू न लिखा जाए। हिंदू धर्म से उनका कोई लेना-देना नहीं है और उनका धर्म सरना है। इनका तर्क है कि इससे आदिवासियों की संस्कृति और धार्मिक आजादी की रक्षा की जा सकेगी। साथ ही आदिवासियों को एक अलग धर्म की पहचान मिल पाएगी।